आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान आज
इक धनुष के बान पे उतार दो
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
विश्व की पुकार है यह भागवत का सार है
कि युद्ध ही वीर का प्रमाण है
कौरवो कि भीड़ हो या, पांडवो की भीड़ हो
जो लड़ सका है वोह ही तो महान है
जीत की हवास नहीं, किसी पे कोई वश नहीं
क्या जिंदगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यूँ डरे
ये जाके आसमान में दहाड़ दो
हो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोंच लो
या की पूरे भाल पर जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल तुम सोंच लो
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या कि केसरी हो ताल तुम ये सोंच लो
जिस कवि कि कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज, फूलती रगों में आज
जो आग कि लापत का तुम बखार दो
आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान आज
इक धनुष के बान पे उतार दो
Saturday, February 19, 2011
आरम्भ है प्रचंड
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डंके की चोट पर