Wednesday, August 31, 2011

ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा

ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा
काफिला साथ और सफ़र तन्हा

अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुजरी है इस कदर तन्हा

रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा

दिन गुजरता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा

हमने दरवाजे तक तो देखा था
फिर ना जाने गए किधर तन्हा

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