Monday, June 7, 2010

ये दुनियां

ज़रा सा कतरा कहीं आज अगर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है

शराफतों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कोन डरता है



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