यूँ ही दो पल सही ग़मगीन दिल को शाद करते हैं
अमीर-ऐ-शहर के आगे कोई फ़रियाद करते हैं
ठिकाना ढूंढते हैं अब किसी उजड़े हुए दिल में
चलो आओ कोई वीरान घर आबाद करते हैं
तुम्हारे ये जहाँ वाले हमे पागल समझते हैं
भुला देते हैं खुद को हम तुम्हे जब याद करते हैं
उन्हें फुर्सत कहाँ बेताब दिल का हाल सुनाने की
हमारे वास्ते कब वक़्त वो बर्बाद करते हैं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment