Thursday, July 15, 2010

फकीराना आये सदा कर चले

फ़कीराना आए सदा कर चले
मियां ख़ुश रहो हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

कोंई ना -उम्मीदाना करते निग़ाह
सो तुम हम से मुंह भी छिपा कर चले

बहुत आरज़ू थी ग़ली की तेरी
सो यां से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

जबीं सज़दा करते ही करते गई
ह़क- -बंदगी हम अदा कर चले

गई उम्र दर बंद--फ़िक्र--ग़ज़ल
सो इस फन को एहसास बऱा कर चले

कहें क्या जो पूछे कोई हम से "मीर"
जहान में तुम आये थे, क्या कर
चले



मीर.......

4 comments:

  1. इस नए ब्‍लॉग के साथ आपका हिंदी चिट्ठाजगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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