फ़कीराना आए सदा कर चले
मियां ख़ुश रहो हम दुआ कर चले
जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले
कोंई ना -उम्मीदाना करते निग़ाह
सो तुम हम से मुंह भी छिपा कर चले
बहुत आरज़ू थी ग़ली की तेरी
सो यां से लहू में नहा कर चले
दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
जबीं सज़दा करते ही करते गई
ह़क-ऐ -बंदगी हम अदा कर चले
गई उम्र दर बंद-ऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल
सो इस फन को एहसास बऱा कर चले
कहें क्या जो पूछे कोई हम से "मीर"
जहान में तुम आये थे, क्या कर चले
मीर.......
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स्वागत अभिनन्दन आपका।
ReplyDeleteइस नए ब्लॉग के साथ आपका हिंदी चिट्ठाजगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteअभिनन्दन!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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